गुनाह
गुनाह
हो जाए अगर दिल से कोई गुनाह तो
क्या कीजिए फिर मांगे वो पनाह तो
सौदाई जहाँ मे किससे पूछे राह कोई
हैरत नही गर हो जाये यहाँ बेराह तो
अपने गुमां से हर कोई महदूद है वर्ना
क्या बुरा होता गर चलते सभी हमाह तो
कैसे जाने पास रहते है अहल-ए-ख़िरद
जब काम ही न आये कभी नवाह तो
तोड़ कर दिल को वो खुश होते है
क्या कहूँ गर नाम देते वो फराह तो
वाइज़ ही कर दे मुहाल जीना तो क्या हो
गर करे कोई मोहब्बत बेपनाह तो
सहर से ही शहर में तरस है दाने की
परिन्दे फिर क्या करे ढले जो पगाह तो
क्या होगा ‘शजर’ फिर उनके पास जाकर
जब निकल ही जाए दिल से दर्द-ए-आह तो
शब्दावली -
गुनाह – दोष , पनाह – शरण, सौदाई – व्यापारिक, हैरत –
आश्चर्य, बेराह – दिशाहीन, गुमां – अहंकार, महदूद – बन्धन, हमाह – साथ साथ, अहल-ए-खिरद
– ज्ञानी लोग , नवाह – पडोस , फराह –
मनोरंजन, वाइज़ – धर्म-गुरू, सहर- सुबह, पगाह- साँझ
Manisha raghav
Excellent
Shashikant Sharma
Good job