कैसे होगा बलात्कारी का अंत


कैसे होगा बलात्कारी का अंत

कैसे होगा बलात्कारी का अंत ?

आज पूरे देश में हर दिन कही-न-कही बलात्कार और हत्या की घटनायें घट रही है । हमें जितनी घटनाओं का पता चलता है , वह कुल घटनाओं का कुछ ही प्रतिशत है । और इन कुछ प्रतिशत में से कुछ ही ऐसी घटनाये है जिन पर पूरा देश उबलने लगता है और दोषियों को सजा देने का सब अपना-अपना तरीका बताने लगते है । जैसे निर्भया , आसिफा, और अब ट्विंकल शर्मा । ये तो वो घटनाये है जिनके नाम से हम जानते है । बाकी तो कितने ही निर्भया और ट्विंकल के साथ दुष्कर्म होते है और उनका नाम भी बदल कर बताया जाता है, चेहरा ढककर दिखाया जाता है । एक दो दिन में फिर वो उसी बेनामी जिंदगी के अंधेरे में गुम हो जाते है ।

सवाल यह भी उठता है कि बलात्कारी कौन होते है ? क्या वो दूसरी दुनिया से आये होते है ? ... नही । वो सभी बलात्कारी और अपराधी हम आप के बीच में से ही एक होता है। अब सोचिए न ... कि कल तक जो हमारे बीच हमारे हर सुःख-दुःख में ,पूजा-पाठ में शरीक होता था, कोई नमाजी था , कोई हाजी था , कोई पुजारी था , वह आज अचानक बलात्कारी कैसे हो जाता है ? क्या हम उसे समझ नही पाते, जान नही पाते , पहचान नहीं पाते है ? नहीं हम जानकर भी, समझकर भी, अंजान बने रहते है। हमें उसकी हरकतें संदिग्ध लगती है पर हम खुद ही छुपाये रहते है उसे । बेकार में हम उलझना नहीं चाहते । और जो पेशेवर अपराधी है , बलात्कारी है वो या तो किसी पद-प्रतिष्ठा वाले है या किसी पद-प्रतिष्ठा वाले की ओट में रहते है जब तक कि कोई बड़ी घटना न घट जाए । अगर कोई बड़ी घटना घट भी जाती है तब भी वो कुछ ले-दे कर जल्द ही रफा-दफा की कोशिश भी करते है तब तक, जब तक कि पूरा समाज सड़को पर न उतर आये इंसाफ के लिए ।

नही तो समाज अगर चाह ले तो क्या मजाल कि कोई गलत कर जाए ।
और प्रशासन अगर ठान ले तो क्या मजाल कि शहर में कोई अपराध हो जाए ।

हमे समाज के प्रति अपनी-अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी समझना होगा । हमें अपने बच्चो पर, आस-पास के बच्चों पर, लोगो पर , उनकी गतिविधियों पर नजर रखना होगा । उस पर जरूरी कार्रवाई करनी होगी । हमें अपने और अपने समाज के प्रति ईमानदार होना होगा । नहीं तो बाद में आप कितना भी सड़क पर उतर कर इंसाफ माँग ले , फाँसी की सजा माँग ले , या सरेआम फाँसी की सजा माँग ले । इससे अपराध कम न होंगे । आपको पता है न कि हत्या करने की सजा फाँसी होती है, तो क्या हत्याएँ नही होती है ? रेप भी करते है और उसके बाद हत्या भी कर देते है।

जहाँ तक सरेआम फाँसी की सजा की बात है तो मुझे नही लगता कि भारत जैसे देश में ये सम्भव है । जहाँ अपराधियों और बलात्कारियों की सजा कम कराने के लिए भी बिकाउ वकील है, उन पर रोने वाले उनके परिवार है । एक आयोग भी है जिसका नाम मानवाधिकार है । जो ट्विंकल और निर्भया पर होने वाले अत्याचार पर कुछ नही बोलते लेकिन जब दोषियों को सरेआम फाँसी या गोली मारी जाएगी तो उन्हे इस पर ऐतराज होगा । आप उन लोगों को भी देखिए जो ये कहने से बाज नही आते कि ऐसी घटनाएँ हो जाती है । ऐसी गलती हो जाती है । ये भी सरेआम कहते है । मीडिया में आकर कहते है । मीडिया वाले क्या इंसान नही कि एक थप्पड़ मारे और पूछे कि ये क्या कह रहे हो । मीडिया वालों को भी पहले इंसान बनना होगा, उसके बाद पत्रकारिता के नियम को देखना होगा ।

एक वो वकील है जो चंद रुपयों के लिए बलात्कारियों की सजा कम करने की दलील देता है , तारीख-पे-तारीख की माँग करता है और सालो-साल गुजार देता है बिना सजा के । और एक वो परिवार है जिसकी खुशियाँ उजड़ गयी है जिन खुशियों को कोई सजा या सहानुभूति लौटा नही सकता, समाज की नजर भी उनके उपर से बदल गई है , दूसरे की खुशियाँ न उजड़े इसके लिए वह उस अपराधी के फाँसी की सजा माँगता है । और देश का कानून इस परिवार को भी सालो-साल परेशान करता है ।

मोदी सरकार से हम अपील करते है कि ऐसे बलात्कारियों के लिए, अपराधियों के लिए मृत्युदंड की सजा हो ।

इससे पहले कि पीड़ितों के आँसू सूख जाए, अपराधियों को सजा हो ।
समाज में शांति हो और अपराधियों में खौफ हो  ।

हमे ऐसे कानून की भी माँग करते है कि जो भी किसी पद पर है और वह कोई ऐसी बात कहता है जिसे समाज पर बुरा असर पड़ता हो उसे भी कड़ी से कड़ी सजा होनी चाहिए । आज कानून से एक आम आदमी डरता है और अपराधी बेखौफ रहता है । ऐसे कानून से हम क्या अपेक्षा कर सकते है । एक आम-आदमी एक FIR से डरता है और अपराधी के लिए ये आम बात है क्यों ? एक तरफ आम-आदमी को जब झूठा फँसाया जाता है तो उसे जमानत नही मिलती। और दूसरी तरफ अपराधियों को जमानत आसानी से मिल जाती है ।

कहीं-न-कहीं हमारे समाज में एक वर्ग ऐसा है जो अपराधियों को शह देता है । जिसकी ओट में सभी अपराध किए जाते है और ये प्रशासन से कोई छुपा हुआ नही है । इसे खत्म करने के लिए बहुत कुछ बदलना होगा।

सजा के साथ-साथ सोच को बदलना होगा।
कानून के साथ-साथ सरकार को खुद में बदलना होगा ।
शासन के साथ-साथ प्रशासन में बदलाव करना होगा ।
हमें एक-दूसरे का साथ देना होगा ।
हमें एक-दूसरे के प्रति ईमानदार होना होगा ।

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