संविधान का शिकंजा..! अपराधियों पर या पीड़ितों पर
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असुरक्षित महिला, असुरक्षित समाज,
कहाँ है संविधान ...? कहाँ है कानून ..?
दरिंदे है फलते-फूलते, इन्हीं की है मौज,
और जब कभी लगती है इनको ठेस,
सामने आते है पहले मानवाधिकार,
और फिर आ जाते है कानून
एक पिता, एक समाज, एक बेटी को पढा-लिखा कर डॉक्टर बनाता है, समाज सेवा के लिए, मानव सेवा के लिए और जब वह बेटी समाज सेवा मे लिप्त हो जाती है तो समय का इंतजार करते कुछ दरिंदे उन्हें अपने जाल मे फँसा लेते है, हवस भरी निगाहों से देखते है, नोचते है, और वह बेटी दया की भीख माँगती है, अपने जीवन की भीख माँगती है, अपने इज्जत की भीख माँगती है, आखिर उसकी गलती क्या है...? जो इस तरह से उसे भीख माँगना पड़ता है, और अंततः नतीजा क्या होता है...? दरिंदों को उस बेटी पर कोई दया नही आती, मानव जाति के नाम पर खुद को कलंक साबित करते हुए वो दरिंदे, वहसी उस बेटी के साथ कुकृत्य करते है, बलात्कार करते है, और यह करते हुए उनके दिमाग ये भी नही आता कि यह उसके माँ, बहन या बेटी जैसी है जिसके साथ वह ये सब कर रहा है, उन दरिंदो को अब भी चैन नही आता तो उसे जिंदा जला देते है । यह घटना चाहे हैदराबाद की हो, दिल्ली की हो, उन्नाव की हो या कही और की, उस बेटी का नाम निर्भया हो, प्रियंका हो, दिशा हो, आशिफा हो, ट्विंकल शर्मा हो या कोई और । हर बार एक बेटी रौंदी जाती है। मानव जाति शर्मसार होती है । समाज में, देश में कुछ दिन गुस्से का माहौल होता है, मोमबत्तियाँ जलाई जाती है ... बस । कुछ दिन बाद सब कुछ सामान्य हो जाता है । फिर कुछ और दरिंदे और फिर एक और बेटी ....।
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इस विषय पर भारत का मानवाधिकार आयोग कभी कुछ कहा है क्या ...? मेरे संज्ञान मे तो नही है । इस पर भारत का संविधान कभी कुछ कहा है क्या...? मेरी जानकारी में नही है ।
हाँ आज जब पुलिस प्रशासन उन दरिंदो का एनकाउंटर करती है तो सबसे पहले मानवाधिकार सामने आता है । ऐसा लगता है कि ये दरिंदे इस मानवाधिकार आयोग द्वारा भेजे गए नुमाइंदे थे जिनके एनकाउंटर होते ही वो बिलख पड़ते है । समझ में ये नही आता ये मानवाधिकार वाले है कौन..? कि जब भी किसी आतंकवादी को , अपराधी को फाँसी होती है, किसी का एनकाउंटर होता है तभी ये प्रकट होते है और अपना रूप दिखाते है । बाकी के और दिन पूरे देश को पता नही चलता कि मानवाधिकार जैसा भी कोई आयोग इस देश मे है । इनके काम से ऐसा लगता है कि इनका नाम कुछ इस प्रकार होना चाहिए था । जैसे- अपराधीधिकार, आतंकीधिकार, दानवाधिकार, इस तरह के नाम होने चाहिए थे ।
और संविधान के बारे क्या कहे ..? जो ऐसे एनकाउंटर पर सवाल और जाँच करने का आदेश देती है । उस निर्भया, दिशा, प्रियंका के साथ जो कुछ हुआ उस पर कोई जाँच नही करती, अगर करती भी है तो ऐसी जाँच कि बस पूछिये मत... जाँच की भी जाँच कराने की नौबत आने लगती है । निर्भया मामले मे ही देखिये 7 साल से निर्भया के माता-पिता इस संविधान के चक्कर लगा रहे है और इस प्रकार लगा रहे है जैसे कि ये संविधान इन्हे निर्भया को वापस लाकर दे देगा । नमन करता हूँ इन माता-पिता को जो अपने बेटी को खोकर भी समाज को शिक्षा देने के लिए, उस अपराधी को सजा दिलाने के लिए कानून का साथ नही छोड़ते सिर्फ इस उद्देश्य से कि फाँसी की सजा को देखकर फिर कोई दरिंदा किसी और बेटी को न दबोचे। ऐसे संविधान से सवाल ये है कि ये 7 साल किसलिए ...? अपराधी को बचाने के लिए । आम जनता के पैसो को इस दरिंदो पर लुटाने के लिए । वह संविधान किस काम का जो निर्भया के माता-पिता को भी संतुष्ट नही कर सकता और सात साल हो चुके है । सवाल ये है कि संविधान आम जनता के लिए है या आम जनता इस संविधान के लिए ...?
जो फैसला इस देश के आम जनता को खुश करता है वही संविधान है, जो फैसला आम जनता के अंदर फिर से जीने की, उठने की, आगे बढने की हिम्मत देता है वही संविधान है । जो फैसला दरिंदों के अंदर डर पैदा करता है वही संविधान है । जो फैसला अपराधियों को, हवसियों को फिर से कुकृत्य करने से डराता है वही संविधान है । और हैदराबाद केस में पुलिस ने जो एनकाउंटर किया है उससे आम जनता के अंदर हिम्मत और अपराधियों के अंदर खौफ पैदा करता है और ये होना चाहिए था। पुलिस भी पहले एक आम जनता है और लगता है कि इस बार पुलिस ने आम जनता की तरह ही सोचकर एनकाउंटर करने का फैसला लिया होगा । अच्छा हुआ.... नही तो फिर से ये चारो दरिंदे आम जनता के पैसे को जेल मे बैठकर मजे से खाता ।
इस एनकाउंटर पर यह संविधान यह भी कर सकता है कि एनकाउंटर करने वाले पुलिस को ही सजा हो जाए । ऐसा बिल्कुल हो सकता है लेकिन अगर ऐसा हुआ तो कानून , इस देश की आम जनता के बीच अपना भरोसा खोने में एक कदम और आगे बढ जायेगा ।
इस फैसले पर कुछ नेता और बुद्धिजीवी कानून का नाम देकर खुद को कानून के ज्ञाता कहलाने की भरसक कोशिश कर रहे हो लेकिन मैं उनसे एक सवाल अवश्य करना चाहता हूँ कि क्या वो तब भी यही कह रहे होते जब ये निर्भया, प्रियंका या आशिफा में से कोई एक इनकी बेटी होती...? ये सिर्फ "बेटी बचाओ बेटी पढाओ" का शोर कर सकते है , जो सिर्फ चुनाबी जुमले है। इन जुमलो को सिद्ध करने के लिए समाज की बेटियों को अपनी इज्जत और जान देकर चुकानी पड़ रही है। और नेता सिर्फ कानून और चुनावी भाषण देने मे लगे है ।
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Manisha raghav
बहुत कुछ सही लिखा आपने पर भगवान जी एनकाउंटर किया बहुत अच्छा किया पर मेरे मन में भी भी एक सवाल रह रहकर आ रहा है पहला यह कि पुलिस की गिरफ्त से ये चारों इतनी आसानी से कैसे छूट गए क्योंकि मैंने जब भी पुलिस को किसी अपराधी को ले जाते हुए देखा है तो उसके दोनों हाथ पीछे की तरफ रस्सी से बंधे हुए ही देखे हैं इन्होने इतनी आसानी से पुलिस कि पिस्टल कैसे छीन ली क्या पुलिस ने इन खूंखार अपराधियों को हलके में लिया हुआ था । फर्जी इसलिए भी लगता है इनकी लाशें तो दिखा रहे हैं पर एक बार भी इनकी शक्लें नहीं दिखा रहे वरना तो अगर ये किसी आतंकवादी को मारते हैं तो सबसे पहले उनकी शक्लें भी दिखाते हैं पता नहीं आगे यह एनकाउंटर वकी में हुआ है चाहे सज्जन जी ने जानबूझकर किया है तो बहुत ही प्रशंसनीय है वरना तो इस देश का ऊपर वाला ही मालिक है । उत्तम रचना