ज़ख्मों को मैं रोज जलाता रहता हूँ
ज़ख्मों को मैं रोज जलाता रहता हूँ
ज़ख्मों को मैं रोज जलाता रहता हूँ
घर को अपने रोशन करता रहता हूँ
खबर नहीं अतफालों को इन बातों की
हर रोज ख्वाहिशे उनकी ढोता रहता हूँ
कुछ एक परिंदे उड़ते है अब आसमान में
शाम ओ सुबह उन्हीं को गिनता रहता हूँ
है वफा ईमान और खुद्दारी के अफसाने
ये कंकड़-पत्थर युही चुनता रहता हूँ
प्याले मे दिखता है कोई पीने के बाद
वजह यही है कि अक्सर पीता रहता हूँ
क्या देखूँ गुल चाँद गिरि और नील गगन
चिता मे अपनी रोज मैं जलता रहता हूँ
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