लफ़्ज और रंग

लफ़्ज और रंग
एक लफ़्ज है जो बंदे को ज़ालिम बना देता है
एक लफ़्ज है जो बंदे को सोहबत करा देता है
एक रंग है जो जीवन को रंगीन बना देता है
एक रंग है जो मन को ग़मगीन करा देता है
रंग भी यहाँ है और लफ़्ज भी यहाँ है
चुनना है किसको इख्तियार भी यहाँ है
फिर कौन है वो ज़ालिम जो रंग बदल देता है
कौन है वो संगदिल जो लफ़्ज बदल देता है
हर रंग का अंजाम झेलते भी तुम हो
हर लफ़्ज का हिसाब जानते भी तुम हो
फिर सोहबत का रंग क्यों लहू मे बदल जाता है
एक संगदिल इंसान फिर हैवान बन जाता है
क्यों लफ़्ज वही कहना जो दिल को चीड़ दे
क्यों रंग वो ही चुनना जो शबाब लहू हो
फिर लहू-लहू रंग-रंग सब धुआँ हो जाता है
ज़मीं पर इंसान को आसमां ही नजर आता है

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