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बुनते सपने सबकी आँखों में देखा है
बुनते सपने सबकी आँखों में देखा है
बुनते सपने सबकी आँखों में देखा है
सच होते है कितने लाखों में देखा है
गिर जाते है सूखके पत्ते मौसम से
जीने की ज़िद हर कलियों में देखा है
उड़ ले चाहे कितना भी दौलत पे कोई
पंछी का हरेक नज़र दानों में देखा है
दरिया दर्द का बहता है सीने में
तैरने की आदत अपनों में देखा है
गुजर गयी है अपनी ये जीस्त सारी
एक दोस्त ढ़ूँढ़कर हर कूचों में देखा है
करे यकीं अब कैसे किसी मसीहाई पे
फ़्ररेब यहाँ सबकी बातों में देखा है
हरेक मुसाफिर बिक जाता है जीने में
चंद सिक्को के लिपटे कफ़नों में देखा है
समझे क्या इस अंदाज-ए-तबस्सुम को
ऐसे कई रोते चेहरे वीरानों में देखा है
रोटी की फिक़्र में मोहब्बत है अब कहाँ
कहा-सुनी तो हर मकानों में देखा है
जल रहा है “शज़र” अपने ही इश्क़ में
धुआँ निकलते हर दीवानों में देखा है
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