कभी कुछ कर के देखो


कभी कुछ कर के देखो
My post published in Dainik Jagran Daily Newspaper

कभी कुछ कर के देखो

धूल दर्पण से कभी हटा कर देखो
नक़ाब चेहरे से कभी हटा कर देखो

सूखे तिनकों के घोसलें में भी बनते है रिश्तें
अपने रिश्तों को कभी निभा कर देखो

गैर दीवार में दरार न तलाश करो
अपना एक घर कभी बना कर देखो

अपने ख्वाब होते है सबके बेशकीमती
अपने ख्वाबों को कभी सजा कर देखो

उनके गिले-शिकवे बैठ कर गिनते हो
मोहब्बत को मोहब्बत से कभी बुला कर देखो

बाज़ार में आए है चंद नए सिक्के
रिश्तों की भट्ठी में इन्हें कभी तपा कर देखो

अपने आरज़ू के मुकम्मल को जिंदगी कहते हो
किसी रोते चेहरे को कभी हंसा कर देखो


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