कभी कुछ कर के देखो
कभी कुछ कर के देखो
धूल दर्पण से कभी हटा कर देखो
नक़ाब चेहरे से कभी हटा कर देखो
तिनकों के घोसलें में भी बनते है रिश्तें
अपने रिश्तों को कभी निभा कर देखो
गैर की दीवार में दरार न तलाशो
अपना एक घर कभी बना कर देखो
अज़ीज होते है सबके अपने ख्वाब
अपने ख्वाबों को कभी सजा कर देखो
बैठ कर गिनते हो उनके गिले-शिकवे
मोहब्बत को मोहब्बत से कभी बुला कर देखो
बाज़ार में आए है चंद नए सिक्के
वक़्त की आग में इन्हें कभी तपा कर देखो
अपने आरज़ू के मुकम्मल को जिंदगी कहते हो
किसी रोते चेहरे को कभी हंसा कर देखो
0 comment(s)