अपने ही जला गये


अपने ही जला गये

अपने ही जला गये

जब कोई छोड़ जाते है अपनी ही बसाई दुनिया को और फिर अपने ही लोगो द्वारा पहुँचाए जाते है श्मशान मे .... तो सच पूछिये... तो खुदा की दी गयी दुनिया की तमाम बख़शीशो को खोने का दर्द तो सभी को होता है.. मगर इस दर्द का अन्दाज़ा सिर्फ बस इन बातो से होता है कि किसने कितना खोया ... वैसे तो इस दर्द का एहसास श्मशान मे मौजूद सभी को होता है.. लेकिन दुःख इस बात है कि जो बात श्मशान मे सीखने को मिलती है, जो बात हमे जिंदगी भर याद रखने की होती है वो बस श्मशान तक ही रह पाता है... घर पहुँचते ही सब फिर अपने धन्धे मे मशरूफ हो जाते है.. जिंदगी की सच्चाई फिर संसार की झूठी मोह-माया मे दब कर कही खो जाती है ....

आइये देखते है श्मशान क्या कहता है जल रहे उस मरहले से जो अपना सब कुछ छोड़कर आया है, अपने सफर के अंतिम पड़ाव पर...

मंज़िल थी यही तेरी, अब भी समझ न आई
शिक़वा करोगे किससे अब, अपने ही जला गये

अपनों के लिए मिटे तुम, अपनों ने तुझको लूटा
अपनों की है ये आदत, अपने ही जला गये

जीवन ने की जफ़ाई, फिर भी मौत ने की वफ़ाई
अपनों ने दिए थे वादे, अपने ही जला गये

पाने को बहुत हो भटके, बचने को बहुत छुपे तुम
अपनो के लिए किए सब, अपने ही जला गये

चोरी झूठ व धोखा, क्या-क्या नही किये तुम
जिन अपनों को है जीया, अपने ही जला गये

जो कुछ है तुमने पाया, सबकुछ है अब यही पर
जिसको है अपना समझा, अपने ही जला गये

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