सरस्वती की पूजा कैसे करे


सरस्वती की पूजा कैसे करे

सरस्वती की पूजा कैसे करे

सरस्वती का अर्थ है- “संसार के सभी रसों का ज्ञान और समझ देने वाली देवी”। वैसे किसी एक इंसान के लिए ये असम्भव की तरह है कि वह सभी तरह के ज्ञानों को अकेले संचित कर सके। इसलिए सृष्टि के रचयिताओं ने एक ऐसी देवी का आवाहन किया जिसने इस सृष्टि में स्थित सभी ज्ञान और कलाओं का भंडार कहा। इसी ज्ञान और कला के भंडार की देवी को सरस्वती कहा। अब हमें उस देवी या माँ सरस्वती को जानना आवश्यक है, ज्ञान अर्जित करना आवश्यक है, उस ज्ञान का अपने जीवन मे सही इस्तेमाल करना आवश्यक है। सरस्वती की पूजा इसी में है कि आप अपने अर्जित किए हुए ज्ञान का कितना सही इस्तेमाल करते है। और ज्ञानीजनों का कितना सम्मान करते है, उनकी कितनी इज्जत करते है। लेकिन ये सब आजकल आपके आस-पास, आपके समाज में बिल्कुल भी दिखाई नही पड़ता। इसका अर्थ ये है कि सरस्वती की पूजा सिर्फ एक दिखावा और ढकोसला रह गया है।

शास्त्रो में उल्लेख है कि “इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है” अब जरा सोचिए कि आप जो पूजा-पाठ कर रहे है उससे क्या कोई विद्वान बन सकता है या आजतक कोई बना हो.. जरा अपने आस-पास देखिए।...... मूर्ख तभी विद्वान बन सकता है जब वो ज्ञान (सरस्वती) की उपासना करे। ज्ञान को अपने अंदर संचित करे। जिसने भी ज्ञान को थोड़ा भी अपने में संचित किया है वह अपने जीवन मे सुखी से जीवन व्यतीत कर रहा है। अगर वह सरस्वती का गुणगान करता है तो बात समझ में आती है क्योंकि उसने इसका लाभ लिया है, उसने उपासना की है ज्ञान की। उसने व्रत किया है सरस्वती का। और आपको ऐसे लोगो के संगति में जाना चाहिए ताकि आपको जीवन में सरस्वती के लाभ का स्वाद पता चल सके। सरस्वती का स्वाद लेने के बाद जो जीवन में खुशी आती है उसका पता चल सके।

दो-चार फल-फूल, धूप-दीप और पंडितो द्वारा दो-चार मंत्रोच्चार करके, शोर करके आप समाज में सिर्फ झूठी और खोखली धार्मिक छवि बना सकते है और कुछ नही। और इससे न तो आपको कोई लाभ होगा न ही समाज को। आपको या आपके समाज को लाभ तभी होगा जब आप ज्ञान (सरस्वती) को हासिल करे और इसका सही उपयोग अपने और अपने समाज में करे।

सरस्वती ऐसी देवी है जिन्होने समाज में ज्ञान और कला का संचार किया है जिसका आपको  आत्मसात करना है । शास्त्र कहता है कि सरस्वती का जन्म संसार मे वाणी, ज्ञान और कला देने के लिए हुआ है | जैसे श्री कृष्ण के जिह्वा से सरस्वती उत्पन्न होकर जिस वाणी का प्रसार हुआ, उसे गीता के नाम से जाना जाता है ।  और यहाँ श्री कृष्ण के जिहवा से उत्पन्न होकर ज्ञान के रुप मे सरस्वती  यही बता रही है कि अपने जीवन में निर्भीक होकर कैसे जिया जाए? कैसे सही और गलत को पहचान किया जा सके? और कब क्या करना चाहिए और क्या नही करना चाहिए इसका फैसला लेने के लिए संयम और सहज होकर अपने विवेक का इस्तेमाल कैसे किया जाए ? और यही है ज्ञान और यही है सरस्वती। पूरा ब्रह्मांड और प्रकृति को जानने के लिए ज्ञान की जरूरत होती है। इसलिए शास्त्रो ने सरस्वती को ब्रह्मा की पत्नी बना दिया। कि ब्रह्मांड को जानना हो, इसे सही नियंत्रित करना हो तो पहले ज्ञान को अर्जित करो, सरस्वती को धारण करो।

लेकिन आजकल जगह-जगह खर्चीले और शोर-सराबे करके सरस्वती की पूजा के नाम पर समाज में सिर्फ ये दिखाने का प्रयास किया जाता है कि पूजा के नाम पर किसने कितना ज्यादा खर्च किया। अपने पूजा की सफलता इस बात से लगाते है कि उसने खर्च कितना ज्यादा किया । सच कहा जाए तो पूजा करने के लिए खर्च की जरूरत ही नही। पूजा तो श्रद्धा और प्रेम से होती है। फल-फूल, रुपये-पैसे और पंडितों के पाखंड से नही। सरस्वती की पूजा करनी हो तो ज्ञान का सम्मान करना शुरू करे। ज्ञान के संसाधनों का आदर करना सीखे। ज्ञानी लोगो की इज्जत करे । असल में यही सरस्वती की पूजा है। बाकी जो भी हो रहा है उसमें अगर श्रद्धा नही सिर्फ शोर है तो ये सिर्फ आज के दौर के लिए फैशन और दिखावा है ।

यह मेरा व्यक्तिगत विचार है , मेरा उद्देश्य सिर्फ पाखंड पर चोट करना है, पूजा-पाठ के नाम पर शोर को बंद करना व हर मनुष्य को प्रकृति को जानने और उसे आत्मसात करने की तरफ अग्रसर करना है । किसी के भावनाओं को आहत करना नही ... । धन्यवाद

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