हे राम...! कब होगा रावण वध ?


हे राम...! कब होगा रावण वध ?

हे राम...! तुमने अपने काल के रावण तो मार दिए, और अपनी लीला खत्म कर ली, अपना काम सिद्ध कर लिया, काश तुमने रावण-लीला भी खत्म कर दी होती, तो आज का युग कुछ अलग ही होता । आज दसों दिशाओं में रावण के दस सिर रावण-लीला कर रहे है । और लोग रावण के पुतले फूँकनें में व्यस्त है। हर साल रावण के पुतले पिछले रावण से ऊँचे हो जाते है । लेकिन राम ऊँचे नही होते। राम की लीला विस्तारित होनी चाहिए थी । लेकिन लीला रावण की विस्तारित हो रही है । मंचन राम-लीला का होता है लेकिन लोग रावण को देखने में ज्यादा दिलचस्पी लेते है । राम के पात्र के मंचन में ज्यादा आनंद नही लेते, रावण के पात्र का मंचन ही राम-लीला के मंचन का मुख्य पात्र समझा जाता है । मतलब साफ है राम-लीला की आड़ में रावण-लीला परोसी जाती है । और लोग भी इसी से खुश होते है ।

हे राम...! रावण के प्रतीक को लोग जला देते है, लेकिन रावण बचा ही रह जाता है । आपने रावण को इस तरह से क्यों मारा कि समाज में रावण जिंदा ही रह गया । राम की लीला मंदिर और किताबों में समाई रह गई, और रावण की लीला समाज में फलने-फूलने लगी है । राम...! यहाँ ऐसा भी समाज है जहाँ रावण के मंदिर भी है, रावण भी पूजे जाते है । अगर रावण सही था तो रावण का वध क्यों ? अगर रावण गलत था तो रावण का मंदिर क्यों ? इतनी उलझन क्यों है ?

हे राम...! आपके समाज में पाखंड इतना बढ गया है और लोग इतने चालाक हो गए है कि अपने अंदर के रावण बचाने के लिए राम के नाम का पाखंड करते है । अपने अंदर के महिषासुर को बचाने के लिए देवी दुर्गा के नाम पर पाखंड करते है । मुझे नही लगता कि अगर राम आज होते तो ऐसे रावण का वध हो पाता । क्योंकि वो रावण तो सिर्फ रावण था, जिसके अपने सिद्धांत थे, जिसका अपना भगवान था, अपना धर्म था, जिस पर वो अडिग था, वह विद्वान था उसने ऐसी किताबें लिखी, स्त्रोत दिए जिसका लोग इस्तेमाल करते है और आज का रावण राम-राम की चदरिया ओढे राम-राम जप रहा है , जिसका कोई धर्म नही, कोई सिद्धांत नही, ऊँट कब किस ओर करवट ले कुछ पता नही।

हे राम...! आपके देश में कैसे-कैसे लोग है । कहते है देश गरीब है, लोग भूख से मर रहे है, किसान खेती करके भी आत्महत्या कर रहे है । बेरोजगारों की संख्या दिनों-दिन बढ़ती जा रही है । महंगाई कमर तोड़ रही है । लोग जैसे-तैसे अपना जीवन गुजर-बसर कर रहे है । लेकिन यही लोग देवी-देवता के नाम पर, पाखंड करने के नाम पर कुछ भी कर गुजरते है, इसके लिए कोई समस्या सामने नही आती, न बेरोजगारी, न महंगाई, न ही कोई और परेशानी । एक मूर्ति पर भी लोग पचास (50) करोड़ खर्च कर देते है । मंदिरों की कमाई एक दिन की करोड़ो रु0 हो जाती है । क्या है ये सब..? किसी शायर ने ये ठीक ही कहा है -
"चढ़ती थी उस मजार पे चादरें बेशुमार,
और बाहर बैठा एक फकीर सर्दी में मर गया"

सरकार अपनी राजनीति के लिए, व्यक्तिगत अर्थो को सिद्ध करने के लिए राम का नाम इस्तेमाल करती है, धर्म और जाति का नाम इस्तेमाल करती है । सरकार को देश के लोगो से कोई सरोकार नही, परंतु उसके धर्म और जाति से है उस पर राजनीति करने के लिए है बस । आज राम राजनीति करने का एक महत्वपूर्ण साधन है और राम-लीला व्यापार करने की एक वस्तु । तत्कालीन परिप्रेक्ष्य में इससे ज्यादा राम और राम-लीला का कोई महत्व नही है इस देश में । हर साल दुर्गा पूजा के समय जगह-जगह राम-लीला का मंचन होता है, रावण दहन होता है, बहुत सारी आतिशबाजिया होती है, कई तरह की समाज में प्रदूषण फैलाई जाती है । चाहे वो वायु प्रदूषण हो, ध्वनि प्रदूषण हो, या कुछ और । लेकिन इन सब में एक चीज है जिसका फायदा होता है वो है राजनीति से जुड़े लोगो का, धर्म के नाम पर इकट्ठे हुए लोगो को धर्म और जाति के नाम पर बरगला कर, उल्टे-सीधे बोली बोलकर अपना स्वार्थ, अपना उल्लू सीधा करते है । हर बार कहीं-न-कहीं कोई-न-कोई दुर्घटना घटती है, इस मामले में जान-माल की क्षति होती है परंतु इससे किसी को कोई सरोकार नही होता। जिसकी क्षति हुई हो वो जाने बस, बाकि सब फिर उसी भीड़ में शामिल हो जाते है ।

अजीब विडम्बना है इस देश का - खुद ही रावण खड़ा करते है , और खुद ही उसे फूँक देते है । खुद ही दुर्गा की मूर्ति गढ़ लेते है फिर उसे पूजते है और खुद ही उसे विसर्जित कर देते है । किसी को ईश्वर बना दिया और किसी को शैतान, सब अपने हाथ की बात है । जिससे अपनी बात बनती हो उसे मान लिया । बाकी को अमान्य घोषित कर दिया । कुछ लोग रामचरितमानस याद करके सोचते है कि वो विद्वान हो गए और समाज में उसे अलग स्थान मिल जाता है । चाहे उसके विचार और कर्म कुछ भी हो । इन सभी आडम्बरों से एक आम जन को कोई लाभ नही होता, नुकसान अधिक हो जाता है, नेताओ, व्यापारियों और गलत इरादे रखने वालो को फायदा हो जाता है ।

हे राम...! एक उदाहरण देखिए- जैसे नुसरत जहाँ अगर दुर्गा-पूजा में शामिल हो जाती है तो उनके अल्लाह रुष्ट होने लगते है । आप ही बताइये कहाँ है उनके अल्लाह और कहाँ है इनके ईश्वर...? कुछ पता नही । अल्लाह, ईश्वर का कुछ पता नही लेकिन इसके नाम पर झगड़ा करने वाले बहुत है, अपना व्यापार करने वाले बहुत है , ठेकेदार बने बैठे है धर्म के । क्या करें ऐसे लोगों का ... आप कुछ तो ऐसा कर जाते जिससे इस समाज का कुछ भला होता । कब करोगे..? ऐसे रावण का वध !

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