वसंत पंचमी को सरस्वती की पूजा क्यों करते है
वसंत पंचमी को सरस्वती की पूजा क्यों करते है
प्राचीनकाल से ही वसंत पंचमी को ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। जैसे व्यापारियों के लिए दीपावली, अपने तराजू, बाट, बहीखातों का पूजा करने के लिए है, सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, वही महत्व चाहे कलाकारों हो, कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सभी अपने दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की पूजा वंदना से करते हैं।
प्राचीन समय से ही हमारे भारत में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उन सभी मौसमों मे वसंत ऋतु सबसे और सबका पसंदीदा मौसम है | पतझड़ के बाद आने वाला ये मौसम वसंत ऋतु जीवन के हर क्षेत्र मे किसी घोर उदासी के बाद चारो तरफ खुशहाली लाने वाला त्योहार है | जिसमें मौसम में ज्यादा सर्दी भी नही होती है और पेड़-पौधों से झड़ चुके पत्तों मे नई-नई कोपलें फूटने लगती है | पौधों में फूल खिलने लगती है | बागों में बहार आ जाती है | खेतों में सरसों के पीले फूल मानो सोना चमकने लगता है | गेहूँ और जौ के खेतों में बालियाँ खिलने लगतीं है, आमों के पेड़ों पर मंजर (बौर) आने लगते है और हर तरफ रंग-बिरंगी तितलियाँ उन फूलों पर मँडरा कर प्रकृति का अद्भुत मनोरम दृश्य बनाने लगतीं है |
ऐसे वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए प्राचीन भारत में माघ महीने के शुक्ल पक्ष के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था, जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। वसंत पञ्चमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्यौहार है। प्रकृति को सबसे सुंदर रूप मे परिभाषित करने वाले इस वसंत ऋतु के दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में वसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
वसन्त पंचमी या माँ सरस्वती कथा
उपनिषदों की कथा के अनुसार जब भगवान ब्रह्मा ने भगवान शिव की आज्ञा से सृष्टि के प्रारंभिक काल में सभी जीवों और खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की थी लेकिन भगवान ब्रह्मा अपनी इस सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, क्योंकि सृष्टि में सभी जीवों और मनुष्यों के होने के बाद भी चारो ओर मौन छाया रहता था उन्हें लगता था कि अभी भी कुछ कमी रह गई है।
इस समस्या के निवारण के लिए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हुए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति माँ दुर्गा का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं | तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।
ब्रम्हा जी तथा विष्णु जी की बातों को सुनने के बाद उसी क्षण आदिशक्ति दुर्गा माता के शरीर से स्वेत रंग का एक बहुत तेज उत्पन्न हुआ जो एक दिव्य नारी के रूप में बदल गया। यह स्वरूप एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिनके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में थे | अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा के शरीर से उत्पन्न तेज से प्रकट होते ही उन देवी ने वीणा का मधुरनाद किया जिससे संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया। पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब सभी देवताओं ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी "सरस्वती" कहा।
फिर आदिशक्ति भगवती दुर्गा ने ब्रम्हा जी से कहा कि मेरे तेज से उत्पन्न हुई ये देवी सरस्वती आपकी पत्नी बनेंगी, जैसे लक्ष्मी श्री विष्णु की शक्ति हैं, पार्वती महादेव शिव की शक्ति हैं उसी प्रकार ये सरस्वती देवी ही आपकी शक्ति होंगी। ऐसा कह कर आदिशक्ति श्री दुर्गा सब देवताओं के देखते - देखते वहीं अंतर्धान हो गयीं। इसके बाद सभी देवता सृष्टि के संचालन में संलग्न हो गए।
सरस्वती को वागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं। हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से प्रसन्न होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और तभी से इस वरदान के फलस्वरूप भारत देश में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है।
माँ सरस्वती की पूजा घर पर कैसे करे
आइए अब सरस्वती पूजन की सम्पूर्ण विधि के बारे में जानते हैं। सरस्वती पूजन के शुभ मुहूर्त में पूरे विधि विधान से देवी सरस्वती की पूजा करने पर शुभ फल प्राप्त होता है
बसंत पंचमी के दिन सुबह सुबह उठकर गंगा स्नान या घर पर ही स्नान करके पीले पीले रंग का वस्त्र धारण करना अत्यंत शुभ होता है। स्नान करने के बाद सरस्वती पूजन का संकल्प लें और मां की मूर्ति की स्थापना करें। मूर्ति स्थापित करने के बाद देवी मां को पीले वस्त्र पहनाएं और पीले फूलों से श्रृंगार करें और सफेद चंदन, अक्षत और पीले रंग की रोली चढ़ाएं। देवी सरस्वती को पीले रंग के फूलों या गेंदे के फूल से बना हार चढ़ाएं। अब देवी सरस्वती को पीले रंग की मिठाइयों का भोग चढ़ाएं और विधिवत उनकी पूजा करें। और याद रहे कि सबसे पेहले गणेश जी की पूजा जरूर करें उनके बाद देवी सरस्वती की पूजा करें और उनके बाद अन्य देवताओं की भी पूजा करें। पूजन के अंत में ॐ श्री सरस्वतयै नमः के साथ हवन में आहुति दें और हवन पूर्ण हो जाने के बाद प्रसाद ग्रहण और वितरण करें।
वसंत पंचमी पर्व का महत्व
वसंत ऋतु आते ही चारो तरफ का मौसम इतना खुशनुमा हो जाता है की हमारा तन और मन (positive energy) सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता है | प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास और रोमांस से भर जाते हैं। यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल ) का पर्व भारतीय जनजीवन को कई तरह से प्रभावित करता है, चाहे तो आध्यात्मिक हो, धार्मिक हो या ऐतिहासिक |
वसंत पंचमी पर्व का पौराणिक महत्व
जब त्रेता युग में रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उनकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े थे । इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। यहीं शबरी नामक भीलनी जो राम भक्ति मे राम के आने की राह देख रही थी | वह वसंत पंचमी का ही दिन था जब श्री राम भीलनी की कुटिया में पधारे थे तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी थी । प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के अमूल्य प्रसंगों में से एक है | उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है।
वसंत पंचमी पर्व का ऐतिहासिक महत्व
वसंत पंचमी का दिन हमें पृथ्वीराज चौहान की भी याद दिलाता है। उन्होंने विदेशी हमलावर मोहम्मद ग़ोरी को 16 बार पराजित किया और उदारता दिखाते हुए हर बार जीवित छोड़ दिया, पर जब सत्रहवीं बार वे पराजित हुए, तो मोहम्मद ग़ोरी ने उन्हें नहीं छोड़ा। वह उन्हें अपने साथ अफगानिस्तान ले गया और उनकी आंखें फोड़ दीं। इसके बाद की घटना तो जगप्रसिद्ध ही है। मोहम्मद ग़ोरी ने मृत्युदंड देने से पूर्व उनके शब्दभेदी बाण का कमाल देखना चाहा। पृथ्वीराज के साथी कवि चंदबरदाई के परामर्श पर ग़ोरी ने ऊंचे स्थान पर बैठकर तवे पर चोट मारकर संकेत किया। तभी चंदबरदाई ने पृथ्वीराज को संदेश दिया।
चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण।
ता ऊपर सुल्तान है, मत चूको चौहान ॥
(1192 ई) यह घटना भी वसंत पंचमी वाले दिन ही हुई थी। पृथ्वीराज चौहान ने इस बार भूल नहीं की। उन्होंने तवे पर हुई चोट और चंदबरदाई के संकेत से अनुमान लगाकर जो बाण मारा, वह मोहम्मद ग़ोरी के सीने में जा धंसा। इसके बाद चंदबरदाई और पृथ्वीराज ने भी एक दूसरे के पेट में छुरा भौंककर आत्मबलिदान दे दिया।
ऐसा भी माना जाता है की बसंत पंचमी के दिन ही सिखों के दसवें गुरु, गुरु गोबिन्द सिंह जी का विवाह हुआ था। इसलिए सिक्खों के लिए भी यह दिन बहुत महत्वपूर्ण है
राजा भोज का जन्मदिवस वसंत पंचमी को ही आता हैं। राजा भोज इस दिन एक बड़ा उत्सव करवाते थे जिसमें पूरी प्रजा के लिए एक बड़ा प्रीतिभोज रखा जाता था जो चालीस दिन तक चलता था।
वसन्त पंचमी हिन्दी साहित्य की अमर विभूति महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला' का जन्मदिवस (28.02.1899) भी है। निराला जी के मन में निर्धनों के प्रति अपार प्रेम और पीड़ा थी। वे अपने पैसे और वस्त्र खुले मन से निर्धनों को दे डालते थे। इस कारण लोग उन्हें 'महाप्राण' कहते थे।
इतिहास में कई ऐसी घटनाओ का जिक्र मिलता है जिसका वसंत पंचमी से गहरा संबंध है | इसलिए ऐसा कहा जाता है की जो कोई वसंत पंचमी को नया कार्य शुरू करते है वो अतिफलदायक होते है या, इस दिन जन्मे लोग कोशिश करे तो बहुत आगे जाते है।
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