बीज का असमंजस
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बीज का असमंजस
हर तरफ है धुन्ध धुंध,
कहूँ भी कुछ तो क्या कहूँ
एक जाल से घिरा हुआ,
कर-पग भी है बँधा हुआ।
कौन हूँ, कहाँ हूँ मैं?
क्यों हूँ मैं क्यों आया हूँ?
कुछ मुझे पता नहीं।
बाल हूँ या, बाला हूँ मैं,
किसी ने अभी, कहा नहीं।
जाउँ न जाउँ, दुनिया में उस
पहले से ही जाल एक
जिस जहाँ में है बुना हुआ।
जो सोचकर मैं आ रहा,
हूँ यहाँ कुछ करने की,
अब भूलता, ये देखकर,
तस्वीर मेरी गढ़ रहे सब
मुझको देखने से पहले,
तकदीर मेरी बुन रहे सब,
मुझसे पूछने से पहले,
नाम मेरी गुन रहे सब,
कर्म देखने से पहले।
हंस रहा हूँ मन-ही-मन
आकलन करता हुआ।
कि ऐसे जगत में आना मेरा
अच्छा हुआ या बुरा हुआ।
निश्चित जहाँ है, पहले से ही,
करने को और कुछ नहीं,
सोचता ये गर्भ में,
बीज एक पड़ा हुआ।
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